हो कामयाब हर मंजिल

मंजिल यँू बढ़ती रहे, बने वह विजय-स्तम्भ ।
अजातशत्रु सभी यहाँ, बने प्रकाश-स्तम्भ ।।
बने प्रकाश-स्तम्भ, जगत सौ-सौ सुख पावें
समझ कर वास्तु-ज्ञान, स्वर्ग-सा सदन बनावें ।।
कह `वाणी´ कविराज, होय सभी पल-पल सफल
कष्ट कभी ना होय, हो कामयाब हर मंजिल ।।

अमृत `वाणी'


आज का आदमी


आज का आदमी
अपनी गरीबी के कारण
बहुत कम
और
पडोसियों की तरक्की से

बहुत
ज्यादा दुखी है

अमृत 'वाणी'

सब जानते


सब जानते
तू
भी कभी
मजबूत पहाड़ था ,
आज मिटता-मिटता हो गया
छोटा सा कंकर I
मगर
तनिक भी चिंता मत कर
केवल दो बातें ध्यान रखा कर
पहली बात
मौके
की तलाश में
तुझे रात-दिन फिरना है
दूसरी बात
तुझे
कब कहाँ और किसकी आँख में
कैसे गिरना है I



अमृत 'वाणी '
सेंती चित्तौड़गढ़