कर्जो काळो नाग हे

जाता-जाता के गया , बूडा-ठाडा लोग |
कर्जो काळो नाग हे , लख उपजावे रोग ||
लख उपजावे रोग , मूंगी ईंकी दवाई |
आंसू केता जाय , लोग हूणे न लुगाई ||
के 'वाणी' कविराज , मले मूंडा मचकाता|
छीप-छिप काढे दांत , भायला जाता-जाता ||

[24112007(015).jpg]

सुनो शिल्पकार


अरे शिल्पकार
धन्यवाद तुम्हें बारम्बार
धन्य तुम्हारी कला ,
धन्य तुम्हारे छैनी गज और हथोड़े
जो गिनती में बहुत थोड़े |


आश्चर्य तुम पंद्रह दिनों में ही
किसी भी उपेक्षित पत्थर को भगवन बना देते हो
हम कलम के धनी होकर
पन्द्रह वर्षो में भी
इन्सान को इन्सान नहीं बना पाते हैं


तोते की तरह रटा भी दे सारी ऋचाएं और आयतें
तब भी कुछ आरक्षण की आग में डिग्रिया जला कर
खुद जल जाते हैं |
कुछ फोड़ देते हें बसों के शीशे
जी भर के करते तोड़ फोड़
जैसे सर्कस के हाथी हो गए हों पागल


बिजली के शंटर भी बेअसर हो जाते
और
उज्ज्वल चरित्र प्रमाण पत्रों पर
प्रशासन लगा देता हें मुहर बगावत की


लग जाती हें उनकी भी फोटो
पुलिस थाने के हिस्ट्री शीटरों के बीच

सुनो शिल्पकारों

इतनीसी कला तो हमें भी देदो उधार
कि हम इन्सान को भले भगवान नहीं
मगर ईमानदार इन्सान तो बना सकें


अमृत 'वाणी'

वह भी हारा


वह
भी हारा
जो अंतिम स्वांस तक
लड़ता - लड़ता दुश्मनों से हारा

उससे ज्यादा वह हारा
जिसने दुश्मनों के सामने
डाल दिए हथियार
और उठा लिए अपने हाथ उपर

उससे ज्यादा तो वे हारे
जिन्होंने हथियार ही नहीं उठाए
किन्तु सबसे ज्यादा तो वे हारे
जो अपने आपसे हारे

हारते हारते
एक दिन वे बन जाते
इतने बेबस , मजबूर , मायूस , लाचार ,
और बीमार


की
खूद्बखूद्ब को समझ कर इतने बेकार
अंत में हो जाते आत्महत्यारे |










अमृत 'वाणी'

वंदे मातरम् मिल कर गाए


आओ ऐसे दीप जलाए |
अंतर मन का तम मिट जा ||

मन निर्मल ज्यूं गंगा माता |
राम भरत ज्यूँ सारे भ्राता ||


रामायण की गाथा गाए |
भवसागर से तर तर जा ||


चोरी हिंसा हम दूर भगाए |
वंदे मातरम् मिल कर गाए ||





अमृत 'वाणी'



कवि अमृत 'वाणी' एक परिचय

लेखक





शिक्षा
अमृत 'वाणी'
अमृत लाल चंगेरिया (कुमावत)
वास्तु शास्त्री एंव नक्शा नवीस


एम . ए. , एम. एड .
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiYWRkI56rT7EJcRoSKOR0xNNjeWHK1rhsO-fiqfisSUmK-dGQN7PMqqiI80hqjGCsjZzOb5RZ3dLznGNY8GjqJJx38rJzh489j8-qdWJiOvmqMf0e8bo5OYh-9zgfila_SNu2A_D6WWjQ/?imgmax=800.
व्यवसाय प्राध्यापक (हिन्दी)
रा. उ. मा. वि. सेंथी चित्तौड्गढ़ (राज)
पता 134 B प्रताप नगर चित्तौड्गढ़ (राज)
फ़ोन

+91 1472 244802 (R)
+91 9413180558 (M)

वेब साईट www.amritwani.com

E-mail Id

info@amritwani.com
amritwani8@gmail.com

रूचि पठन , लेखन तथा भ्रमण

रचनाएँ

राजस्थानी व हिन्दी में पध-लेखन ,
समाचार पत्रों , आकाशवाणी व कवि सम्मेलनों में कविताओ की प्रस्तुति


प्रकाशित पुस्तकें

आखर कुंडली , महालक्ष्मी चालीसा , सरस्वती चालीसा , साँवरा सेठ चालीसा ,भादवा माता चालीसा , चमत्कार चालीसा , नवी हनुमान चालीसा ,मीरा चालीसा , जनगणना पर कुंडलिया , शिल्प कला पर सो कुंडलिया ,


प्रकाशन

चेतन प्रकाशन
134 B प्रताप नगर चित्तौड्गढ़ (राज)

लौटेगी हरियाली


हरियाली घटती रही , हुए जंगल वीरान |
चिंता सताए शेर को , सब कुछ क्यों वीरान ||
सब कुछ क्यों वीरान , आज कैसे दिन आए |
नहीं जंगली जीव, खाएं तो किसे खाए ||
कह 'वाणी' कविराज , पीओ चाय की प्याली |
लगा रहे हम पेड़ , लौटेगी हरियाली ||

चलो घूमे सुबह सुबह


सुबह चुनो शाम चुनलो , चाहो जितने फूल |
खुश हो देवी देवता , देते हमको फूल ||
देते हमको फूल , चलेंगे वंश हमारे |
देव वृक्ष को पूज , धुल जाय पाप तुमारे ||
कह 'वाणी' कविराज , चलेगी पुरवाई वह |
रोग सब मिट जाय , चलो घूमे सुबह सुबह ||



काला धुँआ


मुझे दिख रहा
तुम्हारा चेहरा धुन्धला
और
तुम्हें मेरा
क्योंकि दोनों के बीच में
भौतिकता का
काला धुँआ |

तोते



तोते
एक सुबह के भूखे तोते
शाम के सूर्यास्त को देख कर
मेरी सो साल की
भाविस्य्वानी न करो
सामने के चोराहे को देख कर
बस इतना सा बताओ
की घर लोतुन्गा
या हास्पिटल
या सीधा मगघट
वहां
एक तोता और हे
मेरे मोहल्ले में वहा बता देगा
मुझे कल का भविष्य |

बहरे कई प्रकार के

बहरे कई प्रकार के, भांत - भांत के लाभ |
जब तक काम पड़े नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||
तब तक लाभ ही लाभ , चिल्ला कर वक्ता कहे |
मन मन हँसता जाय , वक्ता का पसीना बहे ||
कह 'वाणी' कविराज , पोस्ट मेन एमो लाया |
सुनी एक आवाज ,तीन मंजिल कूद आया ||


राजस्थानी राम चालीसा


राम राम शिवजी जपे ,
हर हर बोले राम |
दुई नाम लारे जपो ,
सिध्द होय सब काम ||


https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjxd9HWCx6RTbfe2x2D9wZE5z1mhn3n6E83qtJZ4rpoA8ggiLu4y9uUYZCDVrZDcHwVtGL2lw1nUMy9gXgH9x8XxcFHrM2tr0EZMz58JABSfarkzPtuzFm_9iu9ZoewcqLyW_rfnz8gMzOh/s320/lor19v.jpg




राजस्थानी राम चालीसा का दोहा
अमृत 'वाणी'

गुनाह


गुनाहों की दुनिया में
ह्म
हर गुनाह से बचते रहे
इसीलिए कि हमारे
नन्हें मासूम बच्चे हैं
मगर
बेगुनाह होना ही
कितना बड़ा गुनाह हो गया
कि
आज कल गुनहगारों की बस्ती में
बेगुनाहों के घर
सरे आम तबाह हो रहें |

पैसा

पैसा ऐसी धार है , बनती आंसू धार |
धार उधारी झेलते , डूब गए मंझधार ||
डूब गए मंझधार , गाते सब अपने गीत |
प्यारी प्यारी राग , सुने नहीं कोई मीत ||
कह 'वाणी' कविराज , हाल बिगड़ा है ऐसा |
पैसा मांगे लोग , हम मांगे पैसा - पैसा ||


सच्चे गुरु

सच्चे गुरु को
सच्चा शिष्य मिल जाना
एक नवीन सशक्त क्रांति का
बीजारोपण है

चवन्नी और अठन्नी

आज कल
जहाँ देखो वहाँ
कई मितव्ययी दांत
पराई अठन्नी को भी
इतनी जोर से दबाते हैं
कि
बेचारी अठन्नी
दबती - दबती चवन्नी बन जाती

जब भी
वह खोटी चवन्नी निकलती
इतनी तेज गति से निकलती
कि उन कंजूस सेठों का जबड़ा ही
बाहर निकल जाता
और
इस एक ही झटके में शरीर की
नस नस की बरसों पुरानी
लचक निकल जाती
फिर
फिर तो उन्हें जाना ही पड़ता
खेतों पर पसीना बहाने


उधर जो सही समय पर
सही तरीके से
लक्ष्मी के मंत्रों का जप कर रहा होता
उसके मुंह में
चवन्नी और जबड़ा
अपने आप फिट हो जाता |


फिर, फिर तो
उसकी शक्ल पहचानने में नहीं आती
और आएगी भी कैसे
क्योंकि
मुंह उसका
जबड़ा दूसरे का
चवन्नी किसी तीसरे की |

अमृत 'वाणी'

एक्स्ट्रा क्लास

बस्ता उठा टिंकू चला , चार चोराहे पार |
थक कर जब स्कूल पहुंचा , पता लगा रविवार ||
पता लगा रविवार , नहीं बजेगा घंटा घंटी |
पड़ेगी घर पर मार , नहीं कल की गारंटी ||
फिर चलाया दिमाग , मम्मी करनी कक्षा पास |
जाना   हर रविवार , चलेगी अब एक्स्ट्रा क्लास ||


सांप हमें क्या काटेंगे !!


सांप हमें क्या काटेंगे
हमारे जहर से
वे बेमौत मरे जायेंगे
अगर हमको काटेंगे ?

कान खोल कर सुनलो
विषैले सांपो
वंश समूल नष्ट हो जायेगा
जिस दिन हम तुमको काटेंगे
क्यों

क्योंकि
हम आस्तीन के सांप हे |


अमृत 'वाणी'

अब हमको देना वोट



महंगाई की मार पड़ी , दिया कमर को तोड़ |
हो गए हम विकलांग सभी , खड़े हैं  सब हाथ जोड़ ||
खड़े हें सब हाथ जोड़ , कौन  पूंछे हाल हमारे |
साथी सब गये छोड़ , दूर बहुत हैं किनारे ||
मंत्री जी समझाए , दिया उनको तुमने वोट |
नहीं रहे कमर एसी अब  हमको देना वोट ||




हे खुदा !

हर इंसा की जिंदगी में
कम से कम एक बार
एक ऐसा दौर आना चाहिए कि
उस दौर के दौरान वो शख्स
हर दौर से गुज़र जाना चाहिए |

अमृत 'वाणी'


Untitled-1 copy

राम चालीसा

कौशल्या का लाडला ,केवे जग जगदीश ।
किरपा करदो मोकली ,रोज नमावां सीस ||
हुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।
चार पुरसारथ मले, ओर मले महावीर ।।



भोजन की मात्रा


भोजन की उतनी ही मात्रा अमृत के समान है,
जिसे ग्रहण करने के बाद आप को,
किसी
भी कार्य में बाधा उत्पन्न नहीं होय |