मायड़ भाषा


मायड़ भाषा लाड़ली, जन-जन कण्ठा हार ।
लाखां-लाखां मोल हे, गाओ मंगलाचार ।।

वो दन बेगो आवसी ,देय मानता राज ।
पल-पल गास्यां गीतड़ा,दूणा होसी काज ।।


अमृत 'वाणी'

एक्स्ट्रा क्लास


बस्ता उठा टिंकू चला , चार चोराहे पार |
थक कर जब स्कूल पहुंचा , पता लगा रविवार ||
पता लगा रविवार , नहीं बजेगा घंटा घंटी |
पड़ेगी घर पर मार  , नहीं कल की गारंटी ||
फिर चलाया दिमाग , मम्मी करनी कक्षा  पास |
जाना   हर रविवार , चलेगी अब  एक्स्ट्रा क्लास ||

आज का आदमी


आज का आदमी
अपनी गरीबी के कारण
बहुत कम
और
पडोसियों की तरक्की से

बहुत
ज्यादा दुखी है

अमृत 'वाणी'

कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।

राम चालीसा
कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।
किरपा करजो मोकळी ,रोज नमावां सीस
हुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।
चारो  पुरसारथ मले, ओर मले मावीर ।।
शब्दार्थ -लाड़ला-परम प्रिय, केवावे-कहलाते है ,जग- संसार,मोकळी-अपार,रोज-प्रतिदिन,नमावां-नमन करते, सीस-मस्तकभावार्थः-
कौशल्या माता के अनन्य , प्रिय पुत्र प्रभु श्रीराम को यह सारा संसार जगदीश नाम से पुकारता है । अमृत ’वाणी’ कविराज कर जोड़ निवेदन करना चाहते हैं कि हे रघुकुल भूशण ! यद्यपि हम आपकी कोई अतिविशिष्ट सेवा नहीं कर पा रहे हैं तथापि हमारी यह मंगलाकांक्षा है कि हम पर आपकी अनन्त कृपा-वृश्टि होती रहे । इसके लिए हम प्रतिदिन प्रातः उठकर आपको केवल प्रणाम ही कर पा रहे हैं।
हे माता जानकी ! आप हमारी प्रार्थना सुन कर शीघ्र ही प्रभु श्रीराम तक पहुओंचावे, कि प्रभु हम पर विशिष्ट दया करते हुए सभी राम-भक्तों को चारों पुरूशार्थों--धर्म , अर्थ , कर्म , मोक्ष- की प्राप्ति एवं राम-भक्त हनुमान के चरण-कमलों की भक्ति प्रदान करें।


अमृत 'वाणी'

ram chalisa लेखकीय


संसार का दाता प्रत्येक जीवात्मा को उसके प्रारब्धानुसार कुछ ना कुछ ऐसा अवश्य देता है जो अन्य की तुलना में निसंदेह कुछ हद तक अतिविशिश्ट होता है। न जाने यह मेरे किस जन्म की भक्ति का प्रारब्ध है कि मां वीणा-पाणि ने अपने छलकते हुुए काव्य-कलश की एक नन्ही सी बून्द बचपन में ही मुझ अकिंचन चरणानुरागी की झोली में भी डालदी ।
सन् 1978 से ही लेखनी यदा-कदा नव काव्य सृजनार्थ हठीले बालक की भांति एकाएक इस तरह मचलती रही कि हर हाल में हंस की भांति चलती रही और हंसवाहिनी की विषेशानुकम्पा निष्चित गन्तव्य तक पहुंचाती रही ।
धार्मिक-कृतियों की अनवरत श्रृंखला में इस ‘रामचालीसा’ को प्रादेशिक भाशा ’राजस्थानी’ की प्रथम काव्य कृति का सौभाग्य प्राप्त हुआ । मर्यादा पुरूशोत्तम श्रीराम के समग्र व्यक्तित्व को संसार का कोई भी कवि पूर्णाभिव्यक्ति नहीं दे सकता, किन्तु यह सक्र्रिय कवि-मन कुछ सृजन किए बगैर मानता भी कहां।
अवतारी युग पुरूश श्रीराम के सम्पूर्ण जीवन को हिन्दी के महाकवि गोस्वामी तुलसीदासजी ने अपनी विश्व विख्यात अमर कृति ‘रामचरित मानस’ में अति लोकप्रिय शैली दोहा-चौपाई छंद में अभिव्यक्ति दी । ‘राम चालीसा’ के सृजन के पूर्व ही यह विचार आ गया था कि राम के व्यक्तित्व के अधिकाधिक महत्वपूर्ण प्रसंगों को क्रमशः जोड़ते हुए एक ऐसी मनोहर काव्य श्रृंखला सृजित की जाए जो प्रातः स्मरणीय देव वन्दनाओं के संग उच्चासन पर शोभायमान हो कर कोटि-कोटि जन मानस का कल कण्ठ-हार बन सके ।
 क्लिश्ट साहित्य को समाज का केवल प्रबुद्ध वर्ग ही हृदयंगम करता आया ,किन्तु मुझे पूरा विश्वास है कि‘ राजस्थानी ’भाशा में सृजित यह ‘राम चालीसा’ सामान्य  भक्तों को निष्चय ही संक्षिप्त रामचरित मानस के रूप में अत्यन्त प्रिय लगेगी ।
  इस काव्य सृजन के लिए मुझे मणासा-रामपुरा रोड़ पर स्थित गांव हाड़ी पीपल्या वाले माताजी , पैतृक गांव छोटीसादड़ी के धर्मराजजी बावजी , भूपालसागर की सरस्वती माता , आखर गणेश , गोलाईवाले हनुमानजी हमारे वंश चंगेरिया ष्कुमावतष् के सती , पूर्वज और झुझारजी एएवं ज्ञात-अज्ञात सभी देव-शक्तियों का भरपूर आशीर्वाद मिला ।
  आभारी हूं पिता रतनलाल चंगेरिया माता सोहनदेवी जिन्होंने मुझे पाल-पोश कर बड़ा किया  इतना पढ़ाया-लिखाया कि मैं सृजन-धर्मिता के मार्ग पर भी अग्रसर हो सका । गुरूदेव श्री श्री रविशंकरजी,लालचंदजी पाटीदार,माताजी ,श्रीजगद्वदासजी , श्रीबालकदासजी गुरूभाई श्रीलक्ष्मीलाल मेनारिया ’उस्ताद ’और महावीर सक्सेना -व्ेादराजजी साहब---का आशीर्वाद और प्रेम मिला ।
  अंकलजी श्री कन्हैयालालजी भाई श्रीनंदकिशोर, श्रीसुंदरलाल, श्रीलक्ष्मीलाल, बहिन निर्मला, ललिता,पत्नी कंचन, पुत्र चंद्रशेखर , चेतन पुत्रियां यशोदा नीलम बाल-गोपाल प्रेरणा , पायल , परी , यमन , वंशराज , युवराज आदि सभी के मुस्कुराते हुए चेहरे मुझे सृजन-मार्ग पर चलते रहेने की अनवरत प्रेरणाएं देते रहेे ।
आभारी हूं गोविन्दराम शर्मा-एम0ए0 अंग्रेजी, हिन्दी, संस्कृत, चन्द्रप्रकाश द्विवेदी , श्रीसोहनलाल चौेधरी खूबचंद‘मस्ताना‘और अग्रज भा्रता के0एल0 सालवी जो विभिन्न भाशाओं एवं संगीत की विशद जानकारियां और अनुभव रखते हैं । साथियों के  संगीत शास्त्रीय मन मस्तिश्क द्वारा पूर्ण परिश्कृत यह काव्य कृति आज आपके कर-कमलों को सुवासित कर रही है । बोधगम्य प्रक्रिया में , अधिकाधिक रोचकता एवं सुगमता लाने के लिए कठिन शब्दार्थ एवं प्रसंगानुकूल चित्रों के साथ-साथ प्रत्येक चार-चार पंक्तियों के भावार्थ भी दिए हैं ।
प्रिय भक्त जनों आपके भक्तिमय अन्तर्मन के महासागर में उद्वेलित विचार तरंगों को सुनने के लिए चिर प्रतीक्षारत आपका अभिन्न अनुज।

http://aboutshiva.com/images/all_gods/Lord_Shri_Ram_Chander_Ji/Lord%20Shri%20Ram%20Chander%20Ji%2003.JPG

कवि अमृत 'वाणी'
सम्पर्क सूत्र :- +919413180558
अमृत लाल चंगेरिया (कुमावत) चित्तोडगढ

तोते



तोते
एक सुबह के भूखे तोते
शाम के सूर्यास्त को देख कर
मेरी सो साल की
भाविस्य्वानी न करो
सामने के चोराहे को देख कर
बस इतना सा बताओ
की घर लोतुन्गा
या हास्पिटल
या सीधा मगघट
वहां
एक तोता और हे
मेरे मोहल्ले में वहा बता देगा
मुझे कल का भविष्य |

बहरे कई प्रकार के



बहरे      कई   प्रकार   के,    भांत -     भांत   के लाभ |
जब तक काम पड़े  नहीं, तब तक लाभ ही लाभ ||
तब तक लाभ ही लाभ ,  चिल्ला कर वक्ता  कहे |
मन मन हँसता जाय , वक्ता का  पसीना बहे ||
कह 'वाणी' कविराज , पोस्ट   मेन  एमो लाया |
सुनी  एक आवाज ,तीन मंजिल  कूद आया ||

गुनाह


गुनाहों की दुनिया में
ह्म
हर गुनाह से बचते रहे
इसीलिए  कि हमारे
नन्हें  मासूम बच्चे हैं
मगर
बेगुनाह होना ही
कितना  बड़ा गुनाह  हो  गया
कि
आज कल गुनहगारों की बस्ती में
बेगुनाहों  के  घर
सरे आम तबाह हो रहें  |

चवन्नी और अठन्नी

आज कल


जहाँ देखो वहाँ


कई मितव्ययी दांत


पराई अठन्नी को भी


इतनी जोर से दबाते हैं


कि


बेचारी अठन्नी


दबती - दबती चवन्नी बन जाती




जब भी


वह खोटी चवन्नी निकलती


इतनी तेज गति से निकलती


कि उन कंजूस सेठों का जबड़ा ही


बाहर निकल जाता


और


इस एक ही झटके में शरीर की


नस नस की बरसों पुरानी


लचक निकल जाती


फिर


फिर तो उन्हें जाना ही पड़ता


खेतों पर पसीना बहाने


उधर जो सही समय पर
सही तरीके से


लक्ष्मी के मंत्रों का जप कर रहा होता


उसके मुंह में


चवन्नी और जबड़ा


अपने आप फिट हो जाता |






फिर, फिर तो


उसकी शक्ल पहचानने में नहीं आती


और आएगी भी कैसे


क्योंकि


मुंह उसका


जबड़ा दूसरे का


चवन्नी किसी तीसरे की |




अमृत 'वाणी'

सांप हमें क्या काटेंगे !!


सांप हमें क्या काटेंगे
हमारे जहर से
वे बेमौत  मरे जायेंगे
अगर हमको काटेंगे ?

कान खोल कर सुनलो
विषैले   सांपो
वंश समूल नष्ट  हो जायेगा
जिस दिन हम तुमको काटेंगे
क्यों

क्योंकि
हम आस्तीन के सांप हे |


अमृत 'वाणी'

अब हमको देना वोट



महंगाई की मार पड़ी , दिया कमर को तोड़ |
हो गए हम विकलांग सभी , खड़े हैं  सब हाथ जोड़ ||
खड़े हें सब हाथ जोड़ , कौन  पूंछे हाल हमारे |
साथी सब गये छोड़ , दूर बहुत हैं किनारे ||
मंत्री जी समझाए , दिया उनको तुमने वोट |
नहीं रहे कमर एसी अब  हमको देना वोट ||




हर इंसा की जिंदगी में

हर इंसा की जिंदगी में                          

कम से कम एक बार                          
एक ऐसा दौर आना चाहिए कि                          
उस दौर के दौरान वो शख्स                          
हर दौर से गुज़र जाना चाहिए |                          

अमृत 'वाणी'


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भोजन की मात्रा




भोजन की उतनी ही मात्रा अमृत के समान  है, जिसे ग्रहण करने के बाद आप को,
किसी
भी कार्य में बाधा उत्पन्न  नहीं होय |

जमी जमाई दूकान

एक नेताजी की
जमी जमाई दूकान
असी खतम होगी ,
कि
ईं चुनाव में तो
वांकी जमानत ही जप्त होगी ।

बाजार में
मारा पग पकड़
बोल्या मर्यो कविराज ,
ईं चुनाव में
मारी ईं भारी हार को
थोड़ो बताओ राज ।

में धोती उठाके
सबने वो निषान दिखायो ,
झटे नेताजी के
छ महीना पेली
एक पागल कुत्ते खायो ।

में बोल्यो
कुत्ता का काटबा से
खून में ईमानदारी बढ़गी,
ओर ईं रिएक्षन से
दूजो कुर्सी पे छडग्यो
अन कुर्सी थांका पे छडगी ।

कुत्ता का जेर से
राजनीति को
सारोई जेर कटग्यो ,
ओर यो एक ही कारण
जो
अबकी बार
थूं कुर्सी सेई हटग्यो ।

स्ुाणोजी नेताजी
राजनीति में
भारी विनाष हो जातो ,
वो कुत्तो जो पागल नी होतो
तो थांको  स्वर्गवास हो जातो ।
   
नेताजी बोल्या
थूं मारा दोष्त होयके
या बात  केवे ,
मने तो वा बात बता
के ईंज राजनीति में
पाछो कसान लेवे ।

में बोल्यो करवालो
डाकूआं का अड्डा में रिजर्वेषन ,
लगवाओ सुबह-षाम
सांप का इंजेक्षन पे इंजेक्षन ।
कुकर्म का दो केपसूल
गबन की चार गोळ्या पाओ ,
अय्यासी की हवा , दारू की दवा
या कोर्स छ महीना खाओ ।


डाकू जो मानग्या थाने
हमेषा उंची मूंछ रहेगी ,
अरे कमीषन लेबोई सीखग्या
तोई विदेषां तक  पूंछ रहेगी  ।

परदादा के दादा को
यो जूनो कोट भी उठै धूलेगो ,
थू सब जाणेगो ,
पण जाण के भी सब भूलेेगो ।  

थू नटतो-नटता खावेगो
ओर खाके झट नट जावेगो ,
पण याद राखजे
थे छीप के कटे बीड़ी भी पी
तो धूंओ अठै  आवेगो।


रचनाकारःअमृत‘वाणी‘






धोळा में धूळो

धोळा,कुदरती हाथां उं दियो थको वो सर्टिफिकेट हे जिने ईं दुनियां को कोई भी मनक राजी मन उं कदै लेबो न छावे ,पण जीमणा में खास ब्याईजी-ब्याणजी की खास मनवार के न्यान सबने न-न करर्ता इंने हंसतो-हंसतो लेणाईज पड़े।
भारतीय समाज की कतरी पीढ़ियां निकळगी होचबा को तरीको हाल तक स्कूल ड्र्ेस के न्यान सबको एक जसोई हे । जसान
कोई मनक के धोळा आबो चालू व्या ईंको मोटो मेतलब यो हे के अबे वो दन-दन हमझदारवे तो जार्यो । धोळो माथो मनका के ज्ञानी कम ओर अनुभवी ज्यादा वेबा को संकेत देतो
रेवे ।
धोळा माथा पे नवी धोळी पाग वेवे या धोळो साफो वेवे ये अणी बात को साफ संकेत देवे कि यांका घर में जो उमर में बड़ा और बड़ा ज्ञानी जो भी हा वे थोड़ाक दन पेलयांई’ज ठेठ उूपरे जाता र्या अन् अबे वीं घर मंे हमझदार की पूंचड़ी का यै’ज र्या ।
नरी जगा में देक्यो के धोळा माथा ने देक-देक घणा मनक राजी वेवे ,अन वे धोळाबा खूद में का में छीजता रेवे । चटोकड़्या छोरा-छोरी तो अणी वास्ते राजी वेवे के नामेक दन केड़े ये बासा के तो स्वर्ग में जाय अन के नरक में जाय ये कटेे भी जाय पण आगो बळो आपाने तो जिमान जाय । नराई नवरा ईं बाते राजी वेवे के अबे थोड़ाक दन में जीमणो वेवा मै’ज हे , अन बासा ईं बास्ते छीजे के पैसा तो हगराई बडं़गे लाग ग्या अबे जीमणो कुंकर वेई । ईं चिंताई चिंताई में कतराई डोकरा हन्नीपात में आजावे । आजकाल असान का मामला नामिक कम पड़्या कां के सरकार कर्यावर बंद करा काड़्या ।

यू ंतो धूलो नराई रंग को वेवे पण सबको असर एक हरिको को’ईज वेवे । जाणे कसा भी रंग को धूळो कसी भी आंख में पड़ जावे तो आंख्या पगईं राती छट वे जावे अन दुधारु ढांडा के न्यान मनक गांवा-गांवा अदभण्या डाक्टर साहब नै हमारता फरे ।
धूळा को सभाव दो त्र्या को वे -कदीक तो यो खूद’ई नवा-नवा पामणा के न्यान बनाई हमच्यार दीदे रूपाळी-रूपाळी आंख्या में जा पड़े, कदीक यो नवी-नवी कळा लगावे । मनकां की कोटेम ने पेल्यां तो आंख्या टमकार’ने ईषारो करदे पचे कोटेम वींकी टेम देकने सब हूत हावेल मलान आंख्या मींच दोड़ता थका के असी तरकीब उं लंग्या नाके के वो चष्मा हमेत धूळा भेळो वेजावे । धूळोतो कदकोई वींकी वाट नाळर्यो । अगर वो नेम धूळा भेळो न व्यो तो या वात ते हे वो मनक सेल्फ स्टार्ट इंजन के न्यान थोड़ीक देर केड़ेई पाचो उठ’न चालबा लाग जई । देकबा वाळा हॅंसता जई’न केता जई । रो मत , रो मत देक-देक वा कीड़ी मरगी , देक या कीड़ी मरगी । यूं के-के उं बिचारा ने ठोकर परवाणे ढंग-ढांग उं रोबा भी न देवे । कदी-कदी असो वे जावे वो धूळा में पड़्यो-पड़्यो भंगार फटफट्या का साईलेंसर के न्यान बा’रा मेले , राग-राग में गीत गावे । मदारी का खेल के न्यान चारू मेर मनक भेळा वेजावे । थोड़ो वो झाटके, थोड़ो वाने झाटके ,कोई मरहम पटृी करे , कोई दवा-दारू लावे , कोई राड़ लगवावे कोई प्लास्टर छड़वावे कोई प्लास्टर कटवावे कोई कपड़ा बदले , कोई नंबर बदलवान नवो चष्मो लावे । असान दो-चार जणा घरका अन दो-चार जणा बा’ला मल’न पाचो वीने चालबा जोगो कर काड़े ।
धूूळा की एक घणी खोटी आदत देकी जिंदगी में कोई भी एक दान जो धूळा भेळो वेग्यो पचे आकी उमर वो वींका कपड़ा बड़िया उं बड़िया हाबू डिटर्जेण्ट लगा-लगा न धोतो रेवे पली अंतर की षीषियां में झंकोळ-झंकोळ अन पेरे तो धूळा को रंग पूरो कदी न उतरे कोने । अणी वास्ते हमझदारी ईंमै’ज हे कि अतरा ध्यान उं चालनो छावे कि न तो धूळो आपणी आंख्या में पड़े न आपा धूळा में पड़ा धूळो वटे को वटे’ज अन आपां आपणे ठाणे पूगा ।
धूळो आंख्या में पड़े या कोई खूद धूळा में जा पड़े यां दोयां बचे ज्यादा खराब हालत वीं दान वे जावे जद धोळा में धूळो पड़ जावे । मनक केता रेवे आछा धोळा में धूळो पटक्यो । कोई केवे आछो जनम्यो रे पूत बाप-दादा को नाम धूळा में मलायो ।
अतरी लांबी-चोड़ी वातां में सार की वात या अतरीक हे कि आंख में धूळो पड़जावे तो पाणी की कटोरी मं आंख्या खोलबाउं ठीक वेजावे , कोई खूदई’ज धूळा में पड़ जावे तो कपड़ा झाटक्या अन पाचा चालता वणो । पण धोळा में धूळो पड़ जावे नी तो वो आदमी नेम मर्या बराबर वे जावे । माजणा वाळा ने तो नवो जमारोई’ज लेणो पड़े । अणी वास्ते जीवो जतरे ध्यान राकजो आंख्या में धूळो पड़जा कै वात नी , आपा धूळा में जा पड़ा कै वात नी , माथा पे धोळा आजावे कै वात नी पण ईं वात को सबने पूरो ध्यान राकणो के कदी धोळा में धूळो नी पड़ जावे ।

रचनाकार - अमृत ‘वाणी’ चित्तौड़गढ़ राज0

सबसे बड़ा दुःख

आता है

अचानक दौड़ता हुआ

सबसे बड़ा दुःख
जो कुछ ही समय में
एक ही सवाल से
सबका इम्तिहान लेकर
चला जाता है
आहिस्ता-आहिस्ता

जिन्दगी की
छोटी सी किताब में
अपने ही हाथों से
वो एक नया पाठ
लिख कर जाता है

जिसमें

बिना किसी पक्षपात के
साफ-साफ
कई नाम लिखे होते हैं
जैसे
कौन-कौन तेरे लिए
तन-मन-धन दे सकते
कौन-कौन
तन-मन दे सकते
कौन-कौन
केवल मन दे सकते
कौन-कौन
केवल तन दे सकते


कौन-कौन
तेरे इ्रर्द-गिर्द
घूमने वाले ऐसे हैं
तेरे वास्ते
जिनके पास
ना वो है
ना उनकी दुआएं
ना दो पैसे हैं ।

बार-बार
वही पाठ पढ़ कर
बार-बार
सही सही समझ कर
सारे पुराने फैंसलेे
तुम्ही को बदलने
सही वक्त आने पर

कि
अब
किस-किस को
केवल जल पिलाना है
किस-किस को
जल और जल-पान कराना है
किस-किस को
जल,जल-पान
और भोजन कराना है ।

किस-किस को तो
आप जीवित हैं
इतना भी नहीं बताना है

कुछ तो ऐसे भी हैं
अगर उनको
तेरी मौत की खबर भी मिल गई
वे दौड़े आएंगे
तेरी मौत पर
जलेबियां बांट कर
और जाएंगे
तेरे
मृत्यु-भोज के लड्डू खाकर ।

आतंकी घाटियां

आतंकी घाटियॉं
और रेगिस्तान
इन दोनों में
केवल
दो ही अंतर खास है ।

पहला अंतर
रेगिस्तान में
पानी
खून की तरहां बहता है
और आतंकी घाटियों में
खून
पानी की तरहां बहता है ।।

दूसरा अंतर
रेगिस्तान में
आदमी की मौत के लिए
यह बहुत जरूरी
कि
वह दिखने में गुनहगार हो
किन्तु
आतंकी घाटियों में
आदमी की मौत के लिए
बस
इतना ही पर्याप्त है
कि
वह दिखने में आदमी हो ।

वें हजारों बार जीए


शहरों में कई लोग
इसलिए मर रहें
कि
उन्हें जीना नहीं आया
और कई लोग
महज
इसीलिए जी रहें कि
उन्हें मौत नहीं आ रही ।

बचे हुए लोग
रो रहे
कुछ उनके वास्ते
जो बेमौत मर गए
कुछ उनके वास्ते
जो
न जाने कब मरेंगे ।

चंद भले लोग
चंद भले लोगों के लिए
रोज
दुआएं कर रहे हैं
हे प्रभु !
वें हजारों साल जीएं
हे प्रभु !
वे हजारों बार जीएं ।।

धोती-जब्बा पगड़ी

धोती-जब्बा-पगड़ी
माथे पर तिलक और चोटी
गले में माला
राम-नाम का दुषाला
गायों को चराने के लिए
लूटेरों को डराने के लिए
हाथ में लठ

यह सब कुछ देख
विगत कुछ वर्शों से
षहरों के कई लोग
मुझे इस तरहां देखते
जैसे
मैं उनकी टी टेबल पर पड़ा हूँ
कल का उपेक्षित अखबार

वे हॅसते हुए देख रहे हैं
आज के अखबार को
जो
सर्कस के जोकर की तरहां सत्य है ।

आम आदमी का कार्टून
जो छपा है
कुछ इस तरहां
जो अपने ही घर में लूट गऐ

लूटेरे ने पहनी है
कोट और पतलून
क्या कलर मेचिंग मिलाया
काला सिर
काली टोपी
काली रात
दिखा रहा
एक-एक को पिस्तौल
अपनी जिन्दगी चाहते हो
तो तुरंत देदो

कुछ दे रहे
बिना गिने
वे
पुराने असली सिक्के
जो तुलसी विवाह,कन्यादान
मंदिर का उद्घाटन
कोर्ट-कचहरी
ईलाज और लाईलाज बीमारी
मृत्यु-भोज और ब्रह्म-भोज
किसी में भी
अब तक नहीं निकले

और कुछ
हाथ जोड़ कर निकाल रहे
इतने शुद्ध आंसू
जो उनकी
मां की मौत पर भी
नहीं निकले ।

मृत्यु


मृत्यु के
कुछ रूप देखे हैं
मैंने
एक वो
जिसमे
कुछ लोग
जीते जी मर जाते हैं ।
एक वो
जिसमें
कुछ
मर कर भी जीते हैं ।
एक वो भी है
जिसमें कुछ ऐसे भी हैं
जो
मर कर ही जीते हैं
ऐ पुरूषार्थी रथ !
समय-समय पर
सभी को
बताते रहना
कैसी-कैसी मृत्यु
करेगी उनका आलिंगन ।।

भूख मर्यो

बालपणा रो नाम भीखा मारू हो पण आखा गॉंव का साथीड़ा वांके नाम को सरलीकरण करता -करता वींको उपनाम भूखमर्यो राक्यो । वसान अक्कल का माइक्रोस्कोप उं देखां तो भूखमर्या में भी मंग्तापणा का कतराई त्र्या का वाइरस फूल गोबी में लट्टा के न्यान साफ-साफ दिख जाता हा ।
दसवीं क्लास में पॉंचवी दान फेल वेताईन बनाई खास अनुभव के वणी भले आदमी धान-चून की दूकान खोल काड़ी। एक दन बूणी बट्टा की टेम पे एक ग्राक वींकी दूकान पे आयो । ग्राक ,ज्वार ,बाजरा, मक्की, चाय-पत्ती असा चार -पॉंच आईटम मोलाया । वो भी नामी भूलक्कड़ भई हो जो थेलो घरै भूल्यायो ।
भूखमर्यो हगराई होदा-पादा प्लास्टिक की थेल्यां में भर-भर ने टरकाबो छार्यो हो पण ग्राक यूं केर्योे के मने यो हारोई सामान कोई ढंगढांग का थेला में देदो ताकि हाड़ा तीन सो रूप्या को सामान घरे सही सलामत परो जावे । वीं न्यारा थेला की किम्मत कोई दस रूप्या ही। सेठजी ने दस रूप्या के घाटा को अंदाजो लाग्ता हीं वांका करम पे हेक्या थका पापड़ के न्यान नराई हळ छड़ग्या ।
दोया के बच में माथा-फोड़ी ज्यादा तेज न व्हे जावे ईं बात को ध्यान
राकता थका ग्राक क्यों देखो सेठजी आज हवेर पेली थां भी घणा छीज ग्या अबे नेम छीजो मती । था असी करो होदा का , थेला का अन थांके छीजबा का तीनां का रूप्या न्यारा-न्यारा लिख अन नीचे रूप्या की कुल जोड़ लगादो । म्हारे भी घरे पाम्णा बाट नाळर्या ।
भूखमर्यो सेठ मन-मन में घणो राजी व्यो , दुकान खोल्या केड़े आज आकाई मीना में पेली दान आज कोई असो दिलदार ग्राक आयो जो मने या वात केर्यो के थाके छीजबा का पैसा भी म्हारा होदा-पादा का बिल में

जोड़दो अन मने झट उं झट फ्री करो। अबे भूखमर्या को हारोई दिमाक खूद के छीजबा को मुआवजो तै करबा में लाग ग्यो । धीरे पू बोल्यो हाड़ा तीन सो रूप्या तो सामान का दस रूप्या थेला का अन साठ रूप्या म्हारे छीजबा का । धापीन चार सो बीसी हमेत चार सो बीस रूप्या को पक्को बिल पकड़ा काड्यो ।
बिल देक ग्राक केवा लाग्यो सब ठीक हे सेठजी पण था छीजबा का साठ


रूप्या खूब ज्यादा जोड़ काड्या । दोया के बच मंे तनातनी बढ़बा लागी । सेठजी छीजता-छीजता छीजबा का पैसा कम करता जार्या । कम करता-करता तीस रूप्या पे आन अंगद के पॉंव के न्यान ठाम का ठाम अड़ग्या । चाल्तो गेलो हो दस-बीस मनक पगई भेळा वेग्या ।
मनक उबा-उबा सतनाराण भगवान की कथा के न्यान आनंद लेबा लाग ग्या । घबरान ग्राक क्यो , मारे तो यो सामान छावै कोने मूं दूजी दूकान पे जार्यूं । ग्र्राक नीचे उतर्यो तो सेठजी भी छीजबा का पैसा ओर नीचे उतर्या । कम करता-करता बोल्या लोेजी छीजबा का अब पॉंच रूप्याईज राक्या । यो सीन देक-देक मनक जो आर्या जोई दांत काड़ता आयर्या अन वटै भीड़ में मलता जार्या । भूखमर्यो यो होचर्यो के मनक ईं बास्ते दॉंत काड़र्या के में भूल-चूक छीजबा का पैसा हेला बता काड्या ।
ग्राक थोड़ोक आगे जा-जा अन पाचो आवे अन सेठजी चार -चार आना कम करता जावे , घबरायो थको लास्ट मेें हो खान मनका की भीड़ में सेठजी बोल्या देकोजी छीजबा का अब चाराना राक्या, सब पैसा कम कर नाक्या । अगर चारानाई मने ईंमें नी मले तो पचे मंे मनक जमारा में आन आज अतरो छीज ने कै जग मार्यो ।


अड़े-भड़े उबा हगराई मनक खूब दांत काड्या । ग्राक भी मन-मन में तो हॅंसर्यो पण दिकाबा के वास्ते यूंई गंभीर मुद्रा बणा मली ही । बना पैसा के असो शानदार खेल-तमाशो चालर्यो हो कुण छोड़े । मनक हॅंस-हॅंस थाक ग्या । जतरे एक दानो-गड़ो डोकरो जीने आकाई गांव का मनक चतराबा केता हा ।
चतराबा वीं सवाल ने देकताई पेली हमझग्या । वे बोल्या देको रे भई ईं
झगड़ा ने मूं पगई मेटदूं । हिंग लागे न फिटकरी रंग चोखो आबा की पक्की गारंटी । म्हारी भी एक षर्त हे मूं ईं फाट्या में कां टांग फसाउं । ईं काम ने जद करूं जद मने एक-एक रूप्यो दोई आडीनूं मले । काओ भई दानकी कींके नी छावे ।
घण्टा खा नू बातां का आंकड़्या में दोयां की गेंट्यां फसथकी ही । दोई कदकाई अबका वेर्या हा । दोई जणा देक्यो ओ बाळ परो एक रूप्या में कसी माया जारी दोई जणा पगईं त्यार वेग्या । हां भरताई चतराबा ने एक-एक रूप्यो काड-काड ने दे काड्यो । अबे बासा नके दो अदेल्या अन चार पावल्या भेळी वेगी ।
पचे चतराबा रिचार्ज व्या थका मोबाईल के न्यान बोल्या देकोरे सब मनकां दोई पार्टियां मने म्हारी दानकी दे काड़ी । फैंसलो यूं हे कि सब जणा देकजो मूं ग्राक को रूप्यों ग्राक ने पाचो देर्यंू ,खट वाने दो अदेल्या पाची देदी । अबे बासा नके चार चाराण्या वंची । वां कै कीदो ग्राक ने एक पावली ओर दे’दी । ग्राक कनू रूप्यो आयो अन हवा रूप्यो वांका नके पाचो परो ग्यो ।


बच्या थका बाराना , बासा वांकी बंडी की मैली जेब में मेल काड्या । भूखमर्या सेठ ने केवे देक रे भई आज दन तक ईं दुनिया में कसा भी सेठ ने माल बेचबा में छीजबा का नाम की एक पै नी मली । अणी वास्ते आज थने भी नी मल सके । ध्यान लगान हुणजो रे मनका जीं दन उं ये दुकानदार्या चाली जदी उं छीजबा को मुनाफो ग्राक ने ओर सेठां ने हंसबा को मुनाफो मलतो आयो । बुड़ा बासा दांत काड़ता जार्या अन फैंसलो हुणाता जार्या ।
भूखमर्यो सेठ मन में होचबा लागो यार आज तो गल्त्यां पे गल्त्यां वेगी । तीर हामे वाळा पे चलायो पण यो तो मुड़-मुड़ान पाचो चलाबा वाळा की‘ज खोपड़ी फाड़ अन मगज में घ ुसग्यो । वीं तीर को असर असो फटाफट व्यो के सेठ धीरे -धीरे मळक-मळक करबा लाग्यो । यो देखताई देकबा वाळा मनका को रंग फेर बदल ग्यो । एक ने छोड़ने सब जणा तो पेल्याई हंसर्या हा एक जणोईज बाकी हो वो भी अबे भीड़ भेळो हॅंसबा लाग ग्यो ।
बुड़ा चतराबा देक्यो सब जणा हूत-हावेल में आग्या अबे या सभा विसर्जित करबा में ई सार हे । बासा आखरीदान बोल्या देकजो रे भायां ग्राक नके रूप्या को हवा रूप्यो परोग्यो अबे बासा जेब मीनू चार आना फेर काड्या सबाका हामे धीरे -धीरे हॅंसबा वाळा वीं भूखमर्या सेठ ने देदीदा ।
अबे बूडा बासा कने दो पावल्या ओर री । वणी मूं भी बंडी की जेब में हाथ घाल अन एक पावली ओर काड़ी । भूखमर्या सेठ ने क्यो देकोजी सेठजी मने था चाराना को गुड़ देदो ।
गुड़ तोलर्या हा वी’दान चतराबा भाव-ताव भी कम करा काड्यो अन छीजता-छीजता थोड़ी-थोड़ी देर में केतार्या थोड़ो ओर नाक , थोड़ो ओर नाक यूं के-के पावली का पीसा में अदेली को गुड़ लेल्दो । पुड़की बांधती टेम कै केवे नीनी ईं गुड़ की एक नी दो पुड़कियां बणाओजी अन दोई बराबर वेणी छावे । ताकड़ी मूं बाट पाचा बाने काड़्या वटीने कागज मेल्यो अन गोर आदो-आदो कीदो । चतराबा के चाराना का पैसा में आठाना को गोर आग्यो। बासा कै कीदो गोर की एक पुड़की तो पाची बण्डी की चारानी वाळी जेब में मेली । तीन चार दान आंग्ळी कर-कर ने चाराना ने मैनूं चेक कर लीदा विष्वास वेग्यो के हॉं चाराना जेब में हे । गोर की एक पुड़की जो बाने वंची थकी ही वींमें कोई धोबो खान गोर होजो वटे उबा थका हगराई जणाने वांट काड़्यो ।
हाराई मनक गोर खाता जार्या अन दांत काड़ता जार्या । कोई केर्या ध्यान उं खाजे यो छीजबा को गोर हे । कोई केर्या न न आरामूं खाओ यो तो हंसबा को गोर हे । कोई केता जार्या ऐ रे आपी एकला नी खावा घरे भी लेजावां । आकाई हेर्या में बाटांगा ।
सब जणा आप-आपणे घरे ग्या । कण-कण करतो गोर आकाई गांव में वंटग्यो ं चतराबा घरे जाताई हेला पाड़ डोकरी ने हेटे बुुलाई । आपणा हाथाउं वांके मूण्डा में गोर की एक मोटी डळी मेली । आपबीती घटना डोकरी मां नामीक कम हुणे जो दो-दो दान हुणाई । डोकरा डोकरी खूब दांत काड़्या ।


जाता थका भाबा ने बासा फेर बण्डी मूं काड़ अन वैज चाराना दीदा क्यो झट जाओ याने आपणी लाखीणी तिजोरी में मेलो । पचे नामेक दरपता-दरपता भाबा का मूंडा का भड़े कट्यो कांद्ड़ो लेग्या । दरप अणी बास्ते र्या हा के मोट्यारपणा में रीस-रीस में भाबा दो चार दान बासा का कांद्ड़ा खाग्या हा, जदकी चतराबा के असी चमक बड़गी आज चार जुग निकळग्या पण वा चमक न निकळी । अस्पताल में दुक्णा पे पटृी करे जसान चतराबा नेम धीरेपू भाबा ने पूच्यो काओसा एक वात वताओसा अबे आपणी तिजोरी मंे लाख रूप्या वेग्या के नी व्यासा तोभी भाबा मंदसौर के ढोल के न्यान बोल्या हाल नी व्या म्हारा अंदाता । घणा रूप्या घटर्या । हाल तो गॉंवा-गॉंवा जान असा कतराई झगड़ा का हुळजारा था करोगा जदी जान वा आदी तिजोरी पूरी भरेगा।

नई का बेटा (कवि अमृत 'वाणी')




रचनाकार कवि अमृत'वाणी (अमृत लाल चंगेरिया कुमावत )
रिकॉर्ड :- 19/2/2010

ओटेमेटिक घड़ी

ऐ मेरी
ओटेमेटिक घड़ी
काश मैंने तुझसे
इतना ही सीख लिया होता
बस मुझे चलना है
तेरी तरह

सर्दी-गर्मी-बरसात
आंधी-तूफां
दिन हो या रात
राह में
फूल हो या कांटे
हर हाल में चलना है
हर दिन
दिन-रात चलना है

अगर
इतना ही सीख लिया होता
तो आज
मेरी घड़ी
इतनी नाजुक नहीं होती

अच्छे-अच्छे
घड़ी-घड़ी
मेरी घड़ी से
उनकी घड़ी मिलाते


बेशक
मेरी घड़ी
आज
वो घड़ी होती

भोळाबा

गाँव का अनपढ़ भोळाबा की रई जसी मुसीबत वीं दान एकदम परवत जसी विकराल बणगी, जणी बगत मोटा शहर में हात-आठ जणा का हण्डाउं कजाणा कसान वे अचानक बिछुड़ग्या हाल तो एक घण्टोई व्यो वेई अन छीज-छीज अन भोळाबा को कोई बाटकी खान खून कम पड़ग्यो थोड़ी देर तो वाने खूब लांबी-लांबी हचक्या चाली पचे एकाएक हचक्या भी पाणी का नल के न्यान पगंई बंद वेगी भोळाबा झट हमझ ग्या म्हारा हण्डावाळा मने हमाळता-हमाळता घणा छेटी पराग्या अबे वाने वीं हण्डाउं पाचो मेलबा की उम्मीद एक पैसा भरी भी री
गॉंव का गेला जतरा लंबा वेवे वांकाउं ज्यादा तो चोड़ी-चोड़ी हड़का अन यांकी लंबाण देको तो आंख्या फाटी की फाटी रे जावे फटफट्या , टेम्पू , मोटरां, कारां , ट्र्का , टेक्स्या , ये सब
अणहेन्दा पुलिसवाळा ने देकताई चोर भागे ज्यंू अपणी-अपणी हिम्मत के पाण पे भाग सके जतरा तेज भागर्या हा
काळीकट हड़क रीस्या बळती नागण हरीकी लाग री ही भोळाबा ने वा हड़क पार करबो बेतरणी नदी के न्यान घणोई अबको लागर्यो हो आज कतराई बरसां बाद स्वर्ग सिधार्या थका भाबा की पाची याद आई पण अबे ईं धरती पे वा सेवा-भावी नार कठे
हड़क पार कर उटीने जाबो भी घणो जरूरी हो कई करा कई करां भोळाबा को भंवरो नेम काम कर र्यो हो बोळ्या पींदे उूबा-उूबा वाने अदघड़ी वेगी ही
कान का परदा फाट जावे जसी उगमणा आडीनू एक जोरदार आवाज आई। ज्यूंई उटीने देक्यो तो एक मोटर अन एक ट्र्क आमी-हामी टकरागी दोया का चलाबा वाळा ,
मोटर का आठ जणा अन ट्र्क का तीन जणा भारी भचड़क्का में ठाम का ठाम मरग्या यो एक्सीडेण्ट देक भोळाबा को रोम-रोम बारा मेलबा लागग्यो आज आछी बीती रे राम यूं केता थका माथो पकड़ भोळाबा वटे का वटै लाकड़ी के टेके नीचे बेठग्या
मनक भी रू्क्ड़ा हरीका वेग्या रूंकड़ा तो सबने छाया देवे मनक तो असा मतलबी के अणहेंदां मनक उं वींका सुक-दुक में वात करबोई भारी गुनाह हमझे भोळाबा अटाउं पाचा एकला वांके गांव भी जा सके असी मुसीबत ,अटने कूड़ो वटने खाई जसी हालत वेगी मन-मन में होचता जार्या के अबे मूं जीव्तो रूं जतरे पाचो कदी असा मोटा शहर में नी आउं
बेतरणी नदी में आवे जसानी भोळाबा के भड़े एक गदेड़ो आन उबो वेग्यो भोळाबा होचबा लागा गरज की टेम पे लोग-भाग गदा ने बाप बणा लेवे मूं ईंकाउं कुंकर अरदास करूं यार मुसीबत में म्हारी कई तो मदद करदे थूंई म्हारा जनम-जनम को बीरो हे असान की मौन प्रार्थना का स्वर भोळाबा का रोम-रोम मूं नरी देर तईं निकळताई र्या
शीतला माता को वाहन वैशाख नंदन भी फोरो-मोटो लोकल अन्तरयामी हो पलक झपकताई हमझ ग्यो भगतजी भारी मुसीबत में हे यांको संकट दूर करबो तो म्हारे बायां हाथ को खेल हे। बेठा-बेठा नरी देर वेबाउं बासा का पग आर0सी0सी0 का सरिया का न्यान जाम वेग्या हा तोई गाठी हिम्मत करने लाकड़ी के टेके पाचा उबा व्या उठताई पेल्यां रामजी को नाम लीदो , रामजी का नाम वना रामजी ने अन वाने एक घड़ी हुंवातो
आकी जिंदगी में पेलीदान एक असो हमझदार गदेड़ो देख्यो जो वांने मुसीबत में देक वांके भड़े आयो
अन आपणी पूंछने उंची कर-कर वांके हाथ के भड़े-भड़े ले जार्यो हो भोळाबा ने हमझबा में घणी देर नी लागी, वे जाणग्या के यो गदो मने हड़क पार कराबा के वास्तै आयो हे। अबे देर कीं बात की। यो अंतिम हथियार, वृद्धावस्था पेंशन का रूप्या के न्यान भोळाबा गदा का पूंछड़ा ने हाथां में पकड़ जापावाळी के न्यान धीरे-धीरे चालबा लाग्या
चार-पांच पांव्डा चाल्याई हा के गदो जोरूं एक आवाज करताई टांगड़ी की एक ठोकी जींकाउं नरी देर उं एक फटफटी वाळो गलत साइड में चालर्यो हो वो डापा-चोक वेन एकदम नीचे जा पड्यो हउू मजाको घळ्डातो थको भोळाबा उं तीन-चार हाथ छेटी आन ढ़ब्यो भोळाबा मन-मन में होचबा लागा अरे राम राम ! आज यो गदो जो म्हारी रक्षा करतो तो आज के ठीक बारमें दन म्हारे बारमां को धूप-ध्यान वे जातो
अबे बासा को आत्म-विशवास ओर मजबूत वेग्यो अन वां गदा की पूंछ ओर गाठी पकड़ लीदी ’’डूबते को तिनके का सहारा वाळी बात धीरे-धीरे सिद्ध वेबा लागी ’’
आदी हड़क पार वी गदेड़े अबकी दान एक धीरेपूं एक प्रेम भरी आवाज दीदी वा हुणताई पेली दो गदेड़ा सड़क का बच में असान ठाला-भुला के न्यान उबा हा , वे भी वांके लारे-लारे मंत्री के लारे संत्री चाले जसान जाणे कदम ताल मिला-मिला अन परेड में सिपाई चाले वसान चालबा लाग्या भोळाबा ने असान लागबा लागग्यो जाणे वे तीन पेड़ा का टेम्पू के पाचली सीट पे बेट ने ठप्पाउं हांया खाता थका हारे जार्या वे
सड़क पार करबा में अबे कोई हिंदरी खान जगा ओर री वेई के शीतला माता के वाहन फेर एक शानदार कल्कारी कीदी जींकाउं आंख्या मींच अन चालबा वाळा नराई जणा की एकी लारे आंख्या खुलगी दो-तीन वाहन तो छेटी उंई सावधान वेग्या
आदी बीड़ी पीवे जतरी देरी लागी कि वे पगई पार वेग्या हड़क के अटीले पाड़े आताई डरपोक बेटो जंग जीत्यायो वे ज्यूं भोळाबा के जीव में जीव आयो। हरीकच फीफरी नीचे नामीक देर दोई भई उबा र्या पचे फेर हिम्मत कर भोळाबा गदा ने पूछ्यो हे म्हारा जनम-जनम का बीरा एक बात बताओ जो काम ईं षहर का लाखीणा मनक कर सक्या वो काम थां कर काड्यो अणी काम में कई राज हे नामीक मनै वताओ
गदो बोल्यो मूतो निस्वार्थ सेवा भावी हूं , पण फेर भी थां पूंछ लीदो तो म्हारो संक्षिप्त परिचय आज थाने भी दै दूं
एक जुग पैल्यां की बात हे कुंभ का मेळा का दन हा, भारी भीड़ चाल री ही अणीज शेर में मूं
ट्राफिक पुलिस हो अन ईंज चोराया पे म्हारी ड्यूटी ही मेटाडोर में साधू-संत बेठ अन जार्या हा एक फटफटी पे बेठ दो जणा चार-पांच बकरा लेन जार्या हा आकूदन मांने पल-पल में सिटृीयां बजाणी पड़े। एक सिटृी नामीक अउं-दउं बाजगी जीं कारण उं संता वाळी मेटाडोर बकरा वाळा फटफट्या आडीने फरगी बकरा ने बचाता-बचाता मेटाडोर ट्र्क के जा भचीकाई वीं ट्र्क में मार्बल की मोटी-मोटी छाटा जारी ही असी जोर की टक्कर लागी कि मेटाडोर तीन-चार पलट्या खाती-खाती ट्राफिक पुलिस का थाम्बा के अड़गी वीं दन म्हारा हमेत एक लारे काई अकवीस जणाको काळ आयो
यमराज महाराज दुर्घटना की सी0आई0डी0 जांच करवाई। सारी जांच-पड़ताल कर मनै दोशी ठहरायो पैतींस साल की नोकरी में वा पांचवी अन लास्ट दुर्घटना ही जणी में मूं भी ठकाणे लाग ग्यो
यमराज भगवान फैंसला के लारे-लारे म्हारी सजा को होकम भी हुणा दियो बोल्या ईं ट्राफिक पुलिस ने गदेड़ा की योनि में नाको ईंकी नामीक लापरवाही उं 21 भला मनक एक लारे बेमौत मर्या पैंतीस साल की नौकरी में पांच दुर्घटना में अणी असान कुल 60 जणा ने बेमोत मार्या
अणी गदेड़ा ने पाचो गदेड़ो बणाओ अणीकी पुणाई वसान घणी कम ही फेर भी नारदजी की सिफारिश उं ईने मनुश्य योनि दे मैं घणी गल्ती कीदी
यमराजजी फरमायो आजकाल योई देकबा में आर्यो के जांकी-जांकी पुण्याई ज्यादा कम होता थकाई वाने मनक बणा काड्या वे अनीति पे चालर्या ,धापीन भ्रष्टाचार करर्या बण्या बणाया काम बगाड़र्या ,मोटी-मोटी रिश्वत लेर्या अन वांकी वजाउं गरीब बिचारा बनाई मोत मर्या
यो 21 संता की अकाल मृत्यु को कारण बण्यो अणी वास्ते ईने 21 जन्मां तक गदेड़ा को जमारो जीणो पड़ेगा ओर भोळा-भाळा दीन दुःखी सज्जन भला मनकां की निहाशुल्क सेवा करनी पड़ेगा। जदी जान अणीको ये मोटा-मोटा पाप मटेगा
हुणजो भोळाबा यो म्हारो पेलाई जनम हे इक्कीस जनमंा ताई म्हारी याई गत वेणी हे मूं ईं चोराया पे उबो रेउं दस बजाउं लगार षाम की पांच बजा तक फीफरी नीचे बेठो रूं कदी उबो रूं चारूं मेर देखतो रेउं कोई थांका जसो दीन-दुःखी दिख जावे तो झट दौड़ वांकी मदद करूं
भोळाबा वीं गदा के वास्ते ग्यारा रूप्या को चारो अन इक्कीस रूप्या की पांच तरह की मिठायां लाया , वाने पांची पकवान प्रेम उं खवाया
पचे अनपढ़ भोळाबा वीं गदेड़ा ने अपणो जाण मनकी एक बात केबा लागो हे भूतपूर्व ट्र्ाफिक मेन साब आप मने सड़क पार कराई मूं जीवन भर थांका एहसान ने कदी भूल नी सकूंगा मूंडा के हाथ फेर-फेर गदा के खूब लाड़ कर्या
जाती बगत उने एक बात के ग्या देक रे म्हारा धरम का बीरा भगवान यमराज थने जो सजा देदी वातो थने भुगतनी पडे़ेगा पण फेर भी म्हारी एक राय हे थने ,वा या कि थां जो अटे फीफरी नीचे सुबह 10 बजाउं लगा षाम की पांच बजा तकी ढ़बो या कई थांकी सरकारी नोकरी थोड़ी थां तो असी कर्या करो के सुबह दन उगताई आजाया करो अन षाम को दन आंतबा तक अटै ढब्या करो असान रोज-रोज ओवर टाइम करोगा नी तो थांकी या इक्कीस जनक की सजा कोई पंद्रा जनमां मै पूरी वे जई पाचो थाने झट मनक जमारो मल जावेगा
मनक जमारा में थूं भूल अन पुलिस मेकमां में भर्ती को फार्म भरे मती मजबूरी में पुलिस बणनोई पड़ जावे तो चोरायाचोराया पे वसान सिट्टया लगावा बच्चे तो आफिस बेठो-बेठो बीड़्या फूंकबो ठीक हे

रचनाकारः- अमृतवाणी