जीवन ढल गया...........

जो जलना था वो सब जल गया ।
जो गलना था वो सब गल गया ।।
'वाणी' दर्द, दर्द सा लगता नहीं अब ।
दर्द के सांचों में जीवन ढल गया ।।


कवि अमृत  'वाणी'

दोश्त

आओ , सभी से हॅंस-हॅंस कर मिले ।
 मतलबी आॅंखें कल खुले ना खुले ।। 
’वाणी’ ऐसे हाथ मिलाओ दोश्तो से ।
 जमाना कहे आज इनकेे नशीब खुले ।। 
 

 कवि अमृत 'वाणी'

नोटा री गड्डियां

नोटा री गड्डियां
अन कलदारां री खनक में तो
ई दुनिया में हगलाई हमझे ।

पण लाखीणा मनक तो वैज वेवे
 जो रोजाना
मनक ने मनक हमझे ॥

'वाणी'
अतरी झट बदल जावे
ओळखाण मनकां की
आछा दनां  में मनक
मनक ने माछर  हमझे ।

अन मुसीबतां में
मनक
माछर नै  मनक हमझे ॥

कवि अमृत  'वाणी'

मुक्तक 


परशुराम :मातृकुण्डिया

विश्व विख्यात महामानव, अनन्त ओजस्वी, जिनके रक्तारविन्द सदृश्य युगल नयन अहर्निश अग्नि-बाणों की अविरल वर्षा करते थे। शस्त्र एवं शास्त्रधारी रणकौशल-सृजनकत्र्ता का महाप्रयलंकारी परशा जिसकी चमक मानो दामिनी की दमक से भी लक्षाधिक तीक्ष्ण और तीव्रतम धावक जिन्होंने इक्कीस बार क्षत्रिय विहीन सृष्टि के संकल्प को साकार करने का सफलासफल प्रयास किया। उस अद्वितीय पितृ-भक्त का अबुझ रक्त-पिपासु परशा, पितृ-आज्ञा से जब माँ का रक्त भी पी गया तब मातृ-हत्या की पाप-मुक्ति की युक्ति हेतु अति व्यग्र त्रिलोकीनाथ इस देवधरा पर कहाँ-कहाँ नहीं गए, समर भवानी रणचण्डी का प्रिय धाम तीर्थराज मेवाड़ की समग्र पुण्य धरा का एक अद्भुत अंचल जिसने उस समय उस पाप-मुक्ति का कौशल और सामथ्र्य जुटाया, साधना का अन्तिम सोपान सिद्ध हुआ वहीं पर माँ का शीश पीठ से स्वतः अलग हुआ और परमपूज्य परशुराम पाप-मुक्त हुए। उस तीर्थ-स्थल को आज मातृकुण्डिया के नाम से जाना जाता है |

रचनाकार -
कवि अमृत ‘वाणी’
(अमृतलाल चंगेरिया कुमावत)

नीलाम्बर के उस पार.....

नीलाम्बर के उस पार छिपकर बैठा वो अचूक बाजीगर विगत लाखों वर्शो से जिसको जैसे नचाना चाहता है उसे उसकी लाख इन्कारियों के बावजूद भी उसी तरह नाचना पड़ता है जिस तरहां ईश्वर चाहता है। वह ऐसा हठीला हाकिम भी है जो अक्सर किसी की सिफारिशें नहीं सुनता।
कवि अमृत ‘वाणी’



मायानगरी का अनुज : इन्दौर

मालवांचल का महानगर, मायानगरी का अनुज, अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों से सुसज्जित, अनन्त प्रगति पथ का अहर्निष धावक, षील से विकासषील, सतरंगी सृजनधर्मिता का अतिसक्रिय स्थल, नैसर्गिंक सौन्दर्य का अक्षय भण्डार, रेल- मार्ग का मकड़ जाल, कोटि-कोटि नयनों का त्राटक बिन्दु, होल्कर षासक की योग्य उत्तराधिकारिणी सुषासिका देवी अहिल्या की गौरव-गाथाओं से सतत् अनुगुंजित सदासुखद इन्दौर ।
कवि अमृत ‘वाणी’

दिल के आँगन में

दिल के आंगन में जब वो ही रहते है ।
फिर आँखों से क्यूँ आसू बहते है ।
जाने क्या होगा अंजामे दिल लगी का ।
जब उनकी सासों से हम जिते है ।

शेखर कुमावत